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उसका दोष क्या है भाग - 18 15 पार्ट सीरीज




उसका दोष क्या है (भाग-18)

             कहानी अब तक 
विद्या और सनोज का संबंध प्रगाढ़ होता जाता है l
                  अब आगे 
  विद्या और सनोज दोनों एक-दूसरे से मिलते हुए अपने भविष्य के सपने बुनने लगते हैं | सनोज विद्या को विश्वास दिलाने में सफल हो जाता है - वह विद्या से बहुत प्यार करता है, और उसके सारे दु:ख तकलीफ दूर करना चाहता है | एक मित्र बन कर, उसका प्रियतम बन कर उसके जीवन को सुख संतुष्टि से परिपूर्ण करना चाहता है l विद्या ने पूरी गंभीरता से सनोज के प्रस्ताव पर विचार किया | उसे लगा रमेश के साथ उसका संबंध वैधानिक तो है नहीं, क्योंकि उसकी दूसरी पत्नी है, और कानून दूसरी पत्नी को मान्यता नहीं देता |
कई बार संगीता इस बात को जता भी चुकी है कि वह कानून और समाज की दृष्टि में रमेश की पत्नी नहीं रक्षिता है l जब उसे रक्षिता बन कर ही रहना है तो फिर रमेश के साथ क्यों रहे, जिसने उसे पग-पग पर धोखा दिया | सोच विचार कर षड्यंत्र करके अब तक उसके साथ एक एक घटना को अंजाम देता रहा है l उसने सिर्फ इसके पैसे के लिए ही उससे शादी किया और शादी के बाद से ही उसे लूटने में लग गया l 
और अब तो रमेश उसके साथ बस नाम मात्र का औपचारिक संबंध ही रख रहा था, क्योंकि अब रमेश और संगीता के बच्चे बड़े हो रहे थे | उन्हें लग रहा था बच्चे रमेश को कटघरे में खड़ा ना करें, इसलिए वह बच्चों के समक्ष संगीता को पूरी मान्यता देते हुए हर सामाजिक दायित्व का निर्वाह संगीता के साथ कर रहा था | और विद्या के साथ उसका संबंध नाममात्र का ही रह गया था |
  विद्या अभी भी सोचती थी काश रमेश अपनी गलतियों के लिए माफी भी मांग लेता, परंतु रमेश को तो अपनी कोई गलती दृष्टिगत हो ही नहीं रही थी | अपने और विद्या के बीच की पनपने वाली दूरी में भी दोष विद्या का ही दृष्टिगत हो रहा था उसे, और अक्सर इसके लिए विद्या को कई बातें सुना देता l
जब भी उससे बात होती हमेशा दु:खी करने वाली कड़वी बातें ही करता l जैसे कल ही उसने कहा था -
  " तुम इतनी क्रोधित हो हम सभी पर, ऐसा कौन सा बड़ा पाप हमने कर दिया | तुम अविवाहित रह रही थी, तो मैंने विवाह कर लिया तुमसे, क्या यह मेरा दोष था ? और संगीता ने तो तुमसे कभी कुछ भी नहीं कहा, उसने तो अपने दोनों बच्चों को भी तुम्हें दे दिया था अब तुम दोष लगाती हो कि उसे टी.बी.थी, अपने छोटे बच्चों को नहीं संभाल सकती थी, इसलिए तुम्हें दिया | किसी भी कारण से दिया,आखिर दिया तो सही | इतने दिन तुम उनके साथ रही,उनसे तुम्हारी ममता सन्तुष्ट हुई, अब अगर वह कुछ दिन संगीता के पास रहते तो क्या हो जाता ? संगीता तो तुमसे उन्हें छीन नहीं रही थी, तुम स्वयं देने गई"|
विद्या - "तुम दोनों की प्लानिंग थी बाबू को ले जाने की, और यह तुमने अपनी बिटिया को कहा भी था,तभी तो वह बाबू को बता रही थी"| 
   रमेश - "अरे तुम भी कमाल करती हो, बच्चों की बात का इतना असर नहीं लेना चाहिए | अरे उसने कहीं से कुछ इधर उधर की बात सुन लिया होगा, और उसे बाबू को बता दिया | संगीता ने या मैंने तो यह तुमसे नहीं कहा था, बाबू को वापस कर दो | परंतु तुमने स्वयं क्रोध में आकर बाबू को वापस कर दिया | और अब हमें दोषी ठहराती हो"| 
  विद्या - सच कहो क्या तुम लोग आकर ले नहीं जाते बाबू को"? उस समय संगीता के बाबू के प्रति व्यव्हार से तो ऐसा ही लग रहा रहा था मानो वह बेचैन हो बाबू को पाने के लिये"|
  रमेश - "मान लिया ले जाते तो क्या हो जाता l बाबू कभी तुम्हारे पास रहता कभी संगीता के पास अरे मेरा बच्चा है वह तुम्हारा भी अधिकार था उस पर, और रही बाबू के प्रति संगीता के व्यवहार की बात तो सोचो संगीता आखिर उसकी माँ है l इतने वर्षों बाद उससे मिली थी, तो ऐसे में उसका वह व्यवहार स्वाभाविक था l तुम व्यर्थ विवाद को बढ़ा रही हो"|
  विद्या - " चलो मान ली तुम्हारी हर बात l परन्तु यदि मेरा अधिकार था उस पर तो यहां आने के बाद तुमने बाबू को मेरे पास लाकर क्यों नहीं रखा, वह हमेशा संगीता के साथ रहता है | मैं यदि कभी अपने पास बुला भी लूँ, तो वह 5 मिनट भी मेरे पास रहने नहीं पाता, संगीता या तो स्वयँ उसे ले जाती है या किसी और से बुलवा लेती है l अब उसकी कोशिश होती है बाबू मेरे पास नहीं रहे,बोलो यह सब क्या है | क्या मैं समझ नहीं पाती लोगों की बातें"|
  इन सारी बातों के बाद बस विद्या और दु:खी हो जाती | अभी भी यदि रमेश उसे अपने परिवार में सम्मिलित कर लेता, और दूसरी पत्नी मान कर ही सही परंतु दिल से मान सम्मान देते हुए उन बच्चों की दूसरी मां सबके सम्मुख मान लेता, तो विद्या अपने सारे तकलीफ को भूल कर पूरी जिंदगी उसके साथ इसी रूप में उसकी रक्षिता बन कर भी बिताने को तैयार थी l परंतु यहां तो वह घर की सदस्य लग ही नहीं रही थी l स्कूल से आने के बाद बस अपने कमरे में बंद हो जाती l यदि कभी सबके बीच जा कर बैठने का प्रयास भी करती तो बारी-बारी से संगीता अपने बच्चों को किसी बहाने से वहां से भेज देती, और फिर स्वयं भी चली जाती, और वह अकेली हो जाती | विद्या को घर में एक पल भी काटना मुश्किल लग रहा था |
इसी कठिन समय में मानसिक त्रासदी के बीच उसने एक भयानक निर्णय ले लिया l उसने एक रात सनोज को फोन किया -
  "सनोज मै तुम्हारे प्रस्ताव को स्वीकार करती हूं, परंतु तुम्हें मुझसे विवाह करना होगा, क्या तुम इसके लिए तैयार हो"?
  सनोज को और क्या चाहिए था, झटपट तैयार हो गया | और उसने अगले दिन का मिलने का कार्यक्रम तय कर लिया |
अगले दिन मिलकर उन्होंने सारा कार्यक्रम तय कर लिया l तय कार्यक्रम के अनुसार दोनों ने अपने अपने कार्यालय और विद्यालय से सोमवार से एक सप्ताह का अवकाश ले लिया l
शनिवार को विद्या पूरी तैयारी के साथ विद्यालय के लिये निकली l शनिवार होने के कारण स्कूल की आधी बेला के बाद छुट्टी हो गई l छुट्टी के बाद वापसी के लिए बस में बैठी विद्या, अनुज भी पीछे से उसी बस में आ बैठा l अगले स्टॉपेज में विद्या के पास की सीट खाली हुई, तो सनोज उसके पास ही आ बैठा | यह लोग रांची आकर वहां से शाम की गाड़ी पकड़ कोलकाता चले गये l रात में वहां एक होटल में रुके l
  अगले दिन कालीघाट जाकर मां काली के समक्ष उन्होंने एक दूसरे को पति-पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया | पति सनोज ने विद्या की पहले से ही भरी मांग में सिंदूर भर दिया, मां के चरणों से उठाकर l दोनों ने एक सप्ताह का अवकाश लिया हुआ था, यह पूरा सप्ताह उन्होंने कोलकाता में ही बिताया l 
घर से विद्या एक बैग में अपने कुछ आवश्यक सामान और जेवरात तथा कुछ नगद लेकर आई थी l यह सभी सामान उसने बैग में भर एक थैले में डाला हुआ था l उसके घर वालों को बिल्कुल भी संदेह नहीं हो पाया, क्योंकि उसके थैले में अक्सर स्कूल के विद्यार्थियों की कापियाँ भरी होती थीं l इस बार भी उन्होंने यही समझा,विद्या के थैले में उसके विद्यार्थियों की कापियाँ होंगी l यदि समझ भी जाते तो विद्या को परवाह नहीं थी, जब उन्हें विद्या की परवाह नहीं, तो भला वह क्यों चिंता करे |
विद्या का यह एक सप्ताह बहुत सुखद बीता l सनोज पागल प्रेमी की तरह उसके साथ व्यवहार करता रहा l हर पल उसे अपनी दृष्टि के समक्ष रखता l नवजवान जोड़े के समान वे एक दूसरे में खोये रहते l दिन भर वे कोलकाता के आसपास के दर्शनीय स्थल को देखते, सन्ध्या काल हाथों में हाथ डाले पार्क के एकान्त कोने में बैठ प्रेम भरी बातें करते, और रात्रि प्रेमालाप में व्यतीत होता l कुछ आवश्यक खरीदारी भी उसने की l
अवकाश का समय समाप्त होने पर वे कोलकाता से वापस आ गये अपने कार्यस्थल पर l अगले दिन दोनों को अपने कर्म क्षेत्र में उपस्थित होना था- विद्या को स्कूल और सनोज को प्रखंड कार्यालय में योगदान देना था l 
                          कथा जारी है l
                                   क्रमशः
   निर्मला कर्ण




       

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2 Comments

Abhilasha Deshpande

05-Jul-2023 03:15 AM

मनभावन कहानी

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वानी

16-Jun-2023 07:07 PM

Nice

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